Friday, 1 August 2014

शादी करने आये नेमजी,





शादी करने आये नेमजी, कांकण डोरा तोड़ दिया ।

तोरण पर आकर के प्रभु ने, रथ का मुखड़ा मोड़ दिया ॥

हाथी – घोड़े, रथ – पैदल, बारात बड़ी ही भारी थी
श्याम सलोने नेम कुँवर की, छवि बड़ी ही प्यारी थी
छप्पन क्रोड़ी आये बाराती, ये तो सबसे न्यारी थी
मन ही मन राजुल मुस्काती, प्रभु से रिश्ता जोड़ लिया ॥ 1 ॥

देवी – देवता देखन आये, मन ही मन मुस्काय रहे
भोजन होगा पशुओं का, तीर्थंकर इसको कैसे सहें
रो रोकर अपनी भाषा में, पशु प्रभु से बात करें
पशुओं की पुकार सुनी तो, रथ का मुखड़ा मोड़ दिया ॥ 2 ॥

पूछा राजुल ने जिनवर से, दोष क्या मेरा बतलाओ
प्रीत लगाकर प्रीतम जी, मुझ दुखिया को मत ठुकराओ
तोरण से रथ को मोड़ा है, बात मुझे कुछ समझाओ
क्या कमी है मुझमे, जो मेरा प्यार भरा दिल तोड़ दिया ॥ 3 ॥

नौ भवों की प्रीत पुरानी, मैं तो निभाने आया था
ये दुनिया दुख का सागर है, बात बताने आया था
सच्चा मारग संयम का है, यही सिखाने आया था
इसी लिये रथ को मोड़ा है, जग से रिश्ता तोड़ दिया ॥ 4 ॥

प्रभु की अमृत वाणी सुनकर, राजुल ने संयम धारा
नर – नारी और देवी – देवता, करने लगे जय जयकारा
धर्म को पाकर, कर्म खपाकर, वो तो उतरे भव पारा

नागौरी प्रकाश ने खुद को, प्रभु भरोसे छोड़ दिया ॥ 5 ॥

तर्ज – चाँदी की दीवार

Saturday, 12 April 2014

तेरा पल पल बीता जाय, मुख से जपले महावीराय


तेरा पल पल बीता जाय, मुख से जपले महावीराय
णमो महावीराय, जपो महावीराय - भजो महावीराय, रटो महावीराय

                  वीर नाम है मंगलकारी, सुख सम्पत अरु साताकारी
सब संकट टल जाय, मुख से जपले महावीराय । 1 ।

                   पाप छोड़ कर धर्म किये जा, महावीर का नाम लिये जा
सब चिंता मिट जाय, मुख से जपले महावीराय । 2 ।

         महावीर को मन में बसालो, अशुभ कर्म सब दूर हटालो
मुक्तिपूरी मिल जाय, मुख से जपले महावीराय । 3 ।

                   जग में वीर कई कहलाये, महावीर प्रभु एक ही आये
संजीव’’ शीश झुकाय, मुख से जपले महावीराय । 4 ।

Thursday, 26 December 2013

हे पार्श्व तुम्हारे द्वारे पर, एक दर्श भिखारी आया है।


हे पार्श्व तुम्हारे द्वारे पर, एक दर्श भिखारी आया है।

प्रभु दर्शन भिक्षा पाने को, दो नयन कटोरे लाया है।।

नहीं दुनिया में कोई मेरा है, आफत ने मुझको घेरा है।
प्रभु एक सहारा तेरा है, जब ने मुझको ठुकराया है।।1।।

धन -दौलत की कुछ चाह नहीं, घर-बार छुटे परवाह नहीं।
मेरी इच्छा है तेरे दर्शन की, दुनिया से चित घबराया है।।2।।

मेरी बीच भंवर में नैया है, बस तू ही एक खिवैया है।
लाखों को ज्ञान दिया तुमने, भव-सिन्धु से पार उतार है।।3।।

आपस में प्रीत व् प्रेम नहीं, तुम बिन अब मुझको चैन नहीं।
अब तो तुम आकर दर्शन दो, त्रिलोकीनाथ कहलाया है।।4।।

Thursday, 11 July 2013

तुमसे लागी लगन, लेलो अपनी शरण, पारस प्यारा,

तुमसे लागी लगन, लेलो अपनी शरण, पारस प्यारा,
मेटो- मेटो जी संकट हमारा ..

निशदिन तुमको जपूँ, पर से नेह तजूँ, जीवन सारा,
तेरे चरणों  में बीते  हमारा ..

अश्वसेन के राजदुलारे, वामा देवी के सुत प्राण प्यारे।
सबसे नेह तोड़ा, जग से मुँह को मोड़ा, संयम धारा ..1..

इंद्र और धरणेन्द्र भी आए, देवी पद्मावती मंगल गाए।
आशा पूरो सदा, दुःख नहीं पावे कदा, सेवक थारा ..2..

जग के दुःख की तो परवाह नहीं है, स्वर्ग सुख की भी चाह नहीं है।
मेटो जामन मरण, होवे ऐसा यतन, पारस प्यारा ..3..

लाखों बार तुम्हें शीश नवाऊँ, जग के नाथ तुम्हें कैसे पाऊँ
पंकज व्याकुल भया, दर्शन बिन ये जिया, लागे खारा ..4..

तुमसे लागी लगन, लेलो अपनी शरण, पारस प्यारा,
मेटो- मेटो जी संकट हमारा।

निशदिन तुमको जपूँ, पर से नेह तजूँ, जीवन सारा,
तेरे चरणों  में बीते  हमारा ..

Monday, 17 June 2013

जिनकी प्रतिमा इतनी सुन्दर, वो कितना सुन्दर होगा


नाम है तेरा तारण हारा, कब तेरा दर्शन होगा
जिनकी प्रतिमा इतनी सुन्दर, वो कितना सुन्दर होगा – 2

तुमने तारे लाखो प्राणी
यह संतो की वाणी है
तेरी छवि पर मेरे भगवन
ये दुनिया दीवानी है – 2
भाव से तेरी पूजा रचाओं, जीवन में मंगल होगा
जिनकी प्रतिमा इतनी सुन्दर, वो कितना सुन्दर होगा – 2

सुरवर मुनिवर जिनके चरण में
निशदिन शीश झुकाते है
जो गाते है प्रभु की महिमा
वो सब कुछ पा जाते है – 2
अपने कष्ट मिटाने को तेरे, चरणों का वंदन होगा
जिनकी प्रतिमा इतनी सुंदर, वो कितना सुंदर होगा – 2

मन की मुरादें  लेकर स्वामी
तेरे चरण में आये है ,
हम है बालक , तेरे जिनवर
तेरे ही गुण गाते है – 2
भाव से पार उतरने को तेरे, गीतों का सरगम होगा
जिनकी प्रतिमा इतनी सुंदर, वो कितना सुंदर होगा – 2
नाम है तेरा तारण हारा ……

Saturday, 15 June 2013

धीरे - धीरे मोड़ तू इस मन को

धीरे - धीरे मोड़ तू इस मन को .. इस मन को तू इस मन को ..
मन मोड़ा फिर डर नहीं, कोई दूर प्रभु का घर नहीं ..

मन लोभी मन कपटी, मन है चोर ..
पल पल में कहते आये कछु और ..
कुछ जान ले, पहचान ले .. होना है अस्थिर नहीं ..
कोई दूर प्रभु का घर नहीं ।।१


जप-तप, तीरथ सब होते बेकार ..
जब तक मन में रहते, भरे विकार ..
नादान क्यों, बेभान क्यों, गफलत ऐसे अब कर नहीं ..
कोई दूर प्रभु का घर नहीं ।२


जीत लिया मन, फिर ईश्वर नहीं दूर ..
जान बूझ क्यों "कमल" बना मजबूर ..
अभ्यास से, वैराग्य से, है जग में कुछ दुष्कर नहीं ..
कोई दूर प्रभु का घर नहीं ।३

धुन - धीरे धीरे बोल कोई सुन ना ले ..

Monday, 3 June 2013

जय जय आरती शांति तुम्हारी

जय जय आरती शांति तुम्हारी
तोरा चरण कमल की जाऊं बलिहारी
विश्वसेन अचिरा जी के नंदा
शांतिनाथ मुख पूनम चंदा
४० धनुष सुवर्णमय काया
मृग लांछन प्रभु चरण सुहाया
चक्रवर्ती प्रभु पंचम सोहे
सोलहवा जिनवर जग सहू मोहे
मंगल आरती भोर ही कीजे
जन्म जन्म को लाहो लीजे
कर जोड़ी सेवक गुण गावे
सो नर नारी अमर पद पावे