शादी करने आये नेमजी, कांकण डोरा तोड़ दिया ।
तोरण पर आकर के प्रभु ने, रथ का मुखड़ा मोड़ दिया ॥
हाथी – घोड़े, रथ – पैदल, बारात बड़ी ही भारी थी
श्याम सलोने नेम कुँवर की, छवि बड़ी ही प्यारी थी
छप्पन क्रोड़ी आये बाराती, ये तो सबसे न्यारी थी
मन ही मन राजुल मुस्काती, प्रभु से रिश्ता जोड़ लिया ॥ 1 ॥
देवी – देवता देखन आये, मन ही मन मुस्काय रहे
भोजन होगा पशुओं का, तीर्थंकर इसको कैसे सहें
रो रोकर अपनी भाषा में, पशु प्रभु से बात करें
पशुओं की पुकार सुनी तो, रथ का मुखड़ा मोड़ दिया ॥ 2 ॥
पूछा राजुल ने जिनवर से, दोष क्या मेरा बतलाओ
प्रीत लगाकर प्रीतम जी, मुझ दुखिया को मत ठुकराओ
तोरण से रथ को मोड़ा है, बात मुझे कुछ समझाओ
क्या कमी है मुझमे, जो मेरा प्यार भरा दिल तोड़ दिया ॥ 3 ॥
नौ भवों की प्रीत पुरानी, मैं तो निभाने आया था
ये दुनिया दुख का सागर है, बात बताने आया था
सच्चा मारग संयम का है, यही सिखाने आया था
इसी लिये रथ को मोड़ा है, जग से रिश्ता तोड़ दिया ॥ 4 ॥
प्रभु की अमृत वाणी सुनकर, राजुल ने संयम धारा
नर – नारी और देवी – देवता, करने लगे जय जयकारा
धर्म को पाकर, कर्म खपाकर, वो तो उतरे भव पारा
नागौरी “प्रकाश” ने खुद को, प्रभु भरोसे छोड़ दिया ॥ 5 ॥
तर्ज – चाँदी की दीवार