जय जय आरती शांति तुम्हारी
तोरा चरण कमल की जाऊं बलिहारी
विश्वसेन अचिरा जी के नंदा
शांतिनाथ मुख पूनम चंदा
४० धनुष सुवर्णमय काया
मृग लांछन प्रभु चरण सुहाया
चक्रवर्ती प्रभु पंचम सोहे
सोलहवा जिनवर जग सहू मोहे
मंगल आरती भोर ही कीजे
जन्म जन्म को लाहो लीजे
कर जोड़ी सेवक गुण गावे
सो नर नारी अमर पद पावे
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