Saturday, 15 June 2013

धीरे - धीरे मोड़ तू इस मन को

धीरे - धीरे मोड़ तू इस मन को .. इस मन को तू इस मन को ..
मन मोड़ा फिर डर नहीं, कोई दूर प्रभु का घर नहीं ..

मन लोभी मन कपटी, मन है चोर ..
पल पल में कहते आये कछु और ..
कुछ जान ले, पहचान ले .. होना है अस्थिर नहीं ..
कोई दूर प्रभु का घर नहीं ।।१


जप-तप, तीरथ सब होते बेकार ..
जब तक मन में रहते, भरे विकार ..
नादान क्यों, बेभान क्यों, गफलत ऐसे अब कर नहीं ..
कोई दूर प्रभु का घर नहीं ।२


जीत लिया मन, फिर ईश्वर नहीं दूर ..
जान बूझ क्यों "कमल" बना मजबूर ..
अभ्यास से, वैराग्य से, है जग में कुछ दुष्कर नहीं ..
कोई दूर प्रभु का घर नहीं ।३

धुन - धीरे धीरे बोल कोई सुन ना ले ..

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