हे पार्श्व तुम्हारे द्वारे पर, एक दर्श भिखारी आया है।
प्रभु दर्शन भिक्षा पाने को, दो नयन कटोरे लाया है।।
नहीं दुनिया में कोई मेरा है, आफत ने मुझको घेरा है।
प्रभु एक सहारा तेरा है, जब ने मुझको ठुकराया है।।1।।
धन -दौलत की कुछ चाह नहीं, घर-बार छुटे परवाह नहीं।
मेरी इच्छा है तेरे दर्शन की, दुनिया से चित घबराया है।।2।।
मेरी बीच भंवर में नैया है, बस तू ही एक खिवैया है।
लाखों को ज्ञान दिया तुमने, भव-सिन्धु से पार उतार है।।3।।
आपस में प्रीत व् प्रेम नहीं, तुम बिन अब मुझको चैन नहीं।
अब तो तुम आकर दर्शन दो, त्रिलोकीनाथ कहलाया है।।4।।